व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> सफलता की चाबी सफलता की चाबीधरमपाल बारिया
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
क्या सफलता का मानदंड है ? सफलता सभी पाना चाहते हैं, पर क्यों होता है
ऐसा कि असफलता सामने आ खड़ी होती है? कहां क्यों चूक जाते हैं आप ? सहज
रूप से सफलता प्राप्ति का मार्ग कौन-सा है ? सफलता के संदर्भ में ऐसे ही
कई सवालों के जवाब छिपें हैं, विश्वप्रसिद्ध विचारक स्वेट मार्डेन की इस
सुप्रसिद्ध पुस्तक में। इस पुस्तक को पढ़ें और इसके एक-एक शब्द को आत्मसात
करें। सरसरी तौर पर पढ़ने पर आपको ऐसा लग सकता है कि इसमें कोई नई बात
नहीं कही गयी है, इन सब बातों को तो आप पहले से ही जानते हैं, लेकिन
जैसे-जैसे आप इस पुस्तक में दिए गए तर्कों व सुझावों को पढ़ेंगे, आपको
महसूस होगा कि क्यों सब कुछ जानने के बाद भी आपके हाथों से सफलता
फिसल-फिसल जाती है।
1
छिपी शक्ति की पहचान
कुछ लोग जीवन में अपनी असफलता के ऐसे-ऐसे तर्क देते हैं कि सुनकर हंसी आ
जाती है। इनमें से कुछ लोग तो बिलकुल दया के पात्र दिखाई देते हैं।
उनके विचार देखिए—
‘हम तो जीवन में कभी तरक्की कर ही नहीं सकते।’
‘हम नौकरी छोड़ कर अपना व्यवसाय करें ? असम्भव।’
‘क्या करें, हमारे पास साधन ही नहीं हैं और वैसे साधन जुटाना तो हमारे लिए असम्भव है।’
‘मैं जीवन में कभी अपना मकान बना पाऊंगा, यह सम्भव ही नहीं है। अरे भई ! हम तो धरती से जुड़े ग़रीब हैं। गरीबी में ही पैदा हुए हैं और गरीबी में ही मर जाएंगे।’
‘हमारा तो अपना व्यवसाय बदलना ही असम्भव है इसके लिए कितनी भागदौड़ करनी पड़ती है।’
ऐसी बात करने वाले लोग वास्तव में मनोबल से हीन होते हैं। निराशा और एक अनजाने भय ने उनके मस्तक पर कब्जा किया होता है। कोई उनसे ये पूछे कि भई ! जो काम आप फिलहाल कर रहे हैं, वह भी किसी प्रकार आपके लिए सम्भव हो पाया या नहीं ? आपने इस स्थिति को वश में किया या नहीं ?
फिर दूसरे ऐसे कौन से काम हैं जिन्हें करने का आप प्रयास करें और वह पूरे न हो ? उनमें आपको सफलता प्राप्त न हो।
गारफील्ड का कहना है—‘कोई व्यक्ति जब तक किसी वस्तु की प्राप्ति के लिए प्रयत्न नहीं करेगा, तब तक वह वस्तु उसे प्राप्त नहीं हो सकेगी।’
सफलता-प्राप्ति के लिए जिन गुणों की आवश्यकता होती है, उनका उल्लेख करते हुए आस्टिन फिलिप्स कहता है—‘मनुष्य को सतर्क रहते हुए अवसर की ताक में रहना चाहिए। साहस के साथ सुअवसर को प्राप्त करने का यत्न करना चाहिए और पूरी शक्ति लगाकर दृढ़ता के साथ प्राप्त अवसर के सहारे सर्वोत्तम ढंग से सफलता तक पहुंचना चाहिए। निश्चित सफलता के लिए इन्हीं सद्गुणों की आवश्यकता होती है।’
वरले ने कहा है—‘यदि आप पूर्ण निष्ठा के साथ उद्यम कर रहे हैं तो एक क्षण को भी व्यर्थ मत जाने दीजिए। आप जो काम कर सकते हैं अथवा जिस काम को करने का स्वप्न देखते हैं, उसे आरम्भ कर दीजिए।’
यह मत सोचिए कि ये कार्य आपके वश का नहीं या जो बात आप सोच रहे हैं, वह असम्भव है।
मनुष्य के हृदय में यह दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि मार्ग की खोज कर लूंगा अथवा अपने मार्ग का स्वयं निर्माण करूंगा।
नील नदी के युद्ध का निकट समय आ ही रहा था। नेलसन ने अपने कमाण्डरों के सामने युद्ध का मानचित्र फैलाया। कैप्टन बेरी ने उसे देखा और प्रसन्न होते हुए बोल उठा—‘यदि हम विजयी हुए तो संसार क्या कहेगा ?’
नेलसन भला कैसे चुप रह सकता था, तड़ाक से बोला ‘हमारे पास ‘यदि’ के लिए कोई स्थान नहीं। निश्चित रूप से विजय हमारी ही होगी। हां, यह बात दूसरी है कि हमारी विजय-गाथा कहने वाला कोई जीवित रहेगा या नहीं।’
थोड़ी देर बाद जब कमाण्डर लोग अपने खेमों को आने लगे तो नेलसन फिर दृढ़ निश्चयपूर्वक बोला—‘कल इस समय से पूर्व या तो मैं विजयी हो जाऊंगा या वेस्ट मिन्स्टर गिरजे में मेरे लिए कब्र की तैयारी हो जाएगी।’
सब लोग चले गए। जहां नेलसन के साथी पराजय की सम्भावना देख रहे थे, वहीं नेलसन की तीक्ष्ण दृष्टि एवं साहसी आत्मा को अपूर्व विजय का अवसर दिखाई दे रहा था।
सेण्ट बरनार्ड की घाटी की जांच-पड़ताल और निरीक्षण करके इंजीनियर लोग लौटे तो नेपोलियन ने पूछा—‘क्या सचमुच एल्प्स पर्वत पार करना असम्भव है ?’
इंजीनियरों ने थोड़ा झिझकते हुए उत्तर दिया—‘श्रीमान् सम्भव है कि हम पार कर लें।’
‘जवानो, आगे बढ़े !’ नेपोलियन के मुंह से यह बात निकल पड़ी। उसने दुर्गम मार्ग और उसमें आने वाली कठिनाइयों की ओर किंचित् ध्यान दिए बिना यह आदेश दे दिया।
साठ हजार सैनिक का भारी शस्त्रास्त्र लेकर एल्प्स पर्वत की दुर्गम चोटियों को पार करना वस्तुतः बहुत ही कठिन कार्य था, परन्तु उस समय उसका साथी जेनेवा में शत्रु सेनाओं से घिरा हुआ था और भूखों मर रहा था। विजय के मद में अन्धे आस्ट्रियन सैनिक नील के फाटकों पर धावा बोल रहे थे। ऐसे में नेपोलियन कैसे चुप बैठ सकता था ? अपने साथियों को विपत्ति में पड़ा कैसे छोड़ सकता था ? जब यह असम्भव बात नेपोलियन ने सम्भव कर दिखायी तो लोग कहने लगे-‘अरे वाह ! यह कौन-सी बड़ी बात थी ? यह तो पहले ही सम्भव था।’
वैसे अधिकांश व्यक्ति और सैनिक एल्पस पर्वत की कठिनाइयों के कारण ही इस कार्य को दुष्कर समझते थे। सेनाएं उनके पास थीं, भयंकर शस्त्रास्त्र भी थे, परन्तु उनके पास एक ही वस्तु की कमी थी और वह थी दृढ़ इच्छाशक्ति, जिसके कारण नेपोलियन का कलेजा वज्र के समान कठोर हो जाता था। बड़ी-से-बड़ी आपत्ति आने पर भी वह अपनी आवश्यकता के अनुरूप अवसरों को अपने अनुकूल बना लेता था।
क्या यह अद्भुत बात बिना प्रयास के अपने ही आप हो गई ?
होरेशस ने टाइवर नदी के पुल पर केवल दो सैनिकों के साथ नब्बे हजार टक्सनों की सेना को पुल टूटने तक कैसे रोके रखा ? यह सब कैसे हुआ ? अपनी पराजय देखकर सीजर स्वयं भाला लेकर युद्ध के मैदान में कूद पड़ा और युद्ध का पासा पलट दिया। यदि रीड आस्ट्रियन भालों के सामने अपनी छाती न तान देता तो स्वतन्त्रता का मार्ग कैसे खुलता ? नेपोलियन अनेक वर्षों तक युद्धों में कैसे विजयी होता चला गया ? इतिहास ऐसे हजारों उदाहरणों से भरा पड़ा है, जिनसे यह सिद्ध होता है कि आत्मा की आवाज सुनकर दृढ़ निश्चयपूर्वक जो भी कार्य किया जाता है, संसार की कोई भी शक्ति उसकी सफलता में आड़े नहीं आ सकती। कोई भी बाधा उसमें रुकावट नहीं डाल सकती।
बहुत से व्यक्ति किसी खास अवसर की प्रतीक्षा किया करते हैं। वह अक्सर कहा करते हैं-मुझको मौका मिलने दो।
साधारण अवसरों को वे उपयोगी नहीं समझते। उन्हें यह ज्ञात नहीं कि कोई भी अवसर छोटा या बड़ा नहीं होता। छोटे-छोटे अवसर को भी व्यक्ति अपने बुद्धि-चातुर्य से महत्त्वपूर्ण बना सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि आप छोटे अवसर को भी हाथ से न जाने दें। कई बार छोटे-छोटे अवसर ही मनुष्य की बहुत बड़ी उपलब्धि का कारण बन जाते हैं।
ई.एच. चेपिन का कहना ठीक है कि अवसर की प्रतीक्षा करने वाले व्यक्तियों को महान या सर्वोत्तम नहीं कहा जा सकता। महान व्यत्ति तो वे हैं जो अवसर को अपना अनुगामी, अपना दास, अपना आज्ञापालक बना लेते हैं।
लाखों अवसरों को खोजने पर शायद ही कोई ऐसा अवसर मिले जो विशेष रूप से आपकी सहायता कर सके।
यदि आप विचार करेंगे तो आपको पता लगेगा कि अवसर आपके सामने सदैव उपस्थित होते रहते हैं।
यदि आज आप थोड़े से भी कामयाब हैं, तो आप उस विषय में सोंचें जब आपने यहां तक पहुंचने के अवसर को चुना और यहां तक पहुंचे। कोई अवसर कितनी विशेष उपलब्धि दिलाएगा, पहले से ऐसा कुछ नहीं कहा जा सकता।
आपमें इच्छाशक्ति है, काम करने की लगन है तो आपको किसी भी अवसर से लाभ उठाने से कोई नहीं रोक सकता।
अवसर तो ईश्वर की कृपा-रूपी बहती गंगा है। इसमें डुबकी लगाकर अपने जीवन को सफल एवं धन्य क्यों नहीं बना लेते ?
अवसर न मिलने का रोना कौन लोग रोते हैं, पहले इस तथ्य पर गौर करें। ऐसा करने वाले वही लोग हैं जो निर्बल हैं। जो संशय में जीते हैं। जो हीनता से ग्रस्त हैं, दब्बू और डरपोक हैं।
अपने को दुर्बल समझने की भावना वास्तव में सच नहीं होती। यह तो मन की एक बीमारी है जिसके भयंकर परिणाम होते हैं। उसे अपनी शक्ति का पता ही नहीं है; उसने बिना अपने आपको तौले यह समझ रखा है कि वह शक्तिहीन है, बदकिस्मत है। जरा सोचिए कि कोई भी व्यक्ति बदकिस्मती के चक्रव्यूह से कैसे निकल सकता है, जब तक कि उसे स्वयं ही विश्वास न हो कि वह इससे निकल भी सकता है।
जब व्यक्ति यह सोचने लगता है कि यह काम मेरे लिए असम्भव है और मैं यह काम नहीं कर सकता तो किसी विज्ञान या किसी टोने-टोटके में इतनी ताकत नहीं कि उसके दम पर उससे वह काम करा लिया जाए।
संदेह और अनिश्चय—यह दोनों दो परस्पर विरोधी दिशाएं हैं। जहां संदेह होगा, आप वहां किसी निश्चय पर नहीं पहुंच सकते। जिसके मन में यह संदेह होगा कि पता नहीं मैं इस काम को कर पाऊंगा भी या नहीं, वह कभी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। सफलता पाने के लिए तो दृढ़ निश्चय की आवश्यकता होती है। जब तक आप अपने शब्दकोश से दुर्भाग्य, असम्भव और अनिश्चय, संदेह आदि को निकालकर बाहर नहीं करेंगे। तब तक आपको जीवन के किसी क्षेत्र में भी सफलता नहीं मिल सकता। आपका ऐसा ही विश्वास रहा तो एक दिन आपके लिए अपने पैरों पर खड़ा होना भी असम्भव हो जाएगा।
अतः उठिए। आंखें खोलिए और इस सत्य को समझिए कि आपको जीवन में कुछ करना और बनना है।
यही अवसर है। अवसर का बहाना मत बनाइए। अवसर तो पग-पग पर बिखरे पड़े हैं। शाला अथवा कॉलेज का प्रत्येक पाठ एक अवसर है, प्रत्येक परीक्षा एक अवसर है, प्रत्येक अच्छी बात या सदुपदेश एक अवसर है, व्यापार-सम्बंधी कोई भी बात एक अवसर है।
उनके विचार देखिए—
‘हम तो जीवन में कभी तरक्की कर ही नहीं सकते।’
‘हम नौकरी छोड़ कर अपना व्यवसाय करें ? असम्भव।’
‘क्या करें, हमारे पास साधन ही नहीं हैं और वैसे साधन जुटाना तो हमारे लिए असम्भव है।’
‘मैं जीवन में कभी अपना मकान बना पाऊंगा, यह सम्भव ही नहीं है। अरे भई ! हम तो धरती से जुड़े ग़रीब हैं। गरीबी में ही पैदा हुए हैं और गरीबी में ही मर जाएंगे।’
‘हमारा तो अपना व्यवसाय बदलना ही असम्भव है इसके लिए कितनी भागदौड़ करनी पड़ती है।’
ऐसी बात करने वाले लोग वास्तव में मनोबल से हीन होते हैं। निराशा और एक अनजाने भय ने उनके मस्तक पर कब्जा किया होता है। कोई उनसे ये पूछे कि भई ! जो काम आप फिलहाल कर रहे हैं, वह भी किसी प्रकार आपके लिए सम्भव हो पाया या नहीं ? आपने इस स्थिति को वश में किया या नहीं ?
फिर दूसरे ऐसे कौन से काम हैं जिन्हें करने का आप प्रयास करें और वह पूरे न हो ? उनमें आपको सफलता प्राप्त न हो।
गारफील्ड का कहना है—‘कोई व्यक्ति जब तक किसी वस्तु की प्राप्ति के लिए प्रयत्न नहीं करेगा, तब तक वह वस्तु उसे प्राप्त नहीं हो सकेगी।’
सफलता-प्राप्ति के लिए जिन गुणों की आवश्यकता होती है, उनका उल्लेख करते हुए आस्टिन फिलिप्स कहता है—‘मनुष्य को सतर्क रहते हुए अवसर की ताक में रहना चाहिए। साहस के साथ सुअवसर को प्राप्त करने का यत्न करना चाहिए और पूरी शक्ति लगाकर दृढ़ता के साथ प्राप्त अवसर के सहारे सर्वोत्तम ढंग से सफलता तक पहुंचना चाहिए। निश्चित सफलता के लिए इन्हीं सद्गुणों की आवश्यकता होती है।’
वरले ने कहा है—‘यदि आप पूर्ण निष्ठा के साथ उद्यम कर रहे हैं तो एक क्षण को भी व्यर्थ मत जाने दीजिए। आप जो काम कर सकते हैं अथवा जिस काम को करने का स्वप्न देखते हैं, उसे आरम्भ कर दीजिए।’
यह मत सोचिए कि ये कार्य आपके वश का नहीं या जो बात आप सोच रहे हैं, वह असम्भव है।
मनुष्य के हृदय में यह दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि मार्ग की खोज कर लूंगा अथवा अपने मार्ग का स्वयं निर्माण करूंगा।
नील नदी के युद्ध का निकट समय आ ही रहा था। नेलसन ने अपने कमाण्डरों के सामने युद्ध का मानचित्र फैलाया। कैप्टन बेरी ने उसे देखा और प्रसन्न होते हुए बोल उठा—‘यदि हम विजयी हुए तो संसार क्या कहेगा ?’
नेलसन भला कैसे चुप रह सकता था, तड़ाक से बोला ‘हमारे पास ‘यदि’ के लिए कोई स्थान नहीं। निश्चित रूप से विजय हमारी ही होगी। हां, यह बात दूसरी है कि हमारी विजय-गाथा कहने वाला कोई जीवित रहेगा या नहीं।’
थोड़ी देर बाद जब कमाण्डर लोग अपने खेमों को आने लगे तो नेलसन फिर दृढ़ निश्चयपूर्वक बोला—‘कल इस समय से पूर्व या तो मैं विजयी हो जाऊंगा या वेस्ट मिन्स्टर गिरजे में मेरे लिए कब्र की तैयारी हो जाएगी।’
सब लोग चले गए। जहां नेलसन के साथी पराजय की सम्भावना देख रहे थे, वहीं नेलसन की तीक्ष्ण दृष्टि एवं साहसी आत्मा को अपूर्व विजय का अवसर दिखाई दे रहा था।
सेण्ट बरनार्ड की घाटी की जांच-पड़ताल और निरीक्षण करके इंजीनियर लोग लौटे तो नेपोलियन ने पूछा—‘क्या सचमुच एल्प्स पर्वत पार करना असम्भव है ?’
इंजीनियरों ने थोड़ा झिझकते हुए उत्तर दिया—‘श्रीमान् सम्भव है कि हम पार कर लें।’
‘जवानो, आगे बढ़े !’ नेपोलियन के मुंह से यह बात निकल पड़ी। उसने दुर्गम मार्ग और उसमें आने वाली कठिनाइयों की ओर किंचित् ध्यान दिए बिना यह आदेश दे दिया।
साठ हजार सैनिक का भारी शस्त्रास्त्र लेकर एल्प्स पर्वत की दुर्गम चोटियों को पार करना वस्तुतः बहुत ही कठिन कार्य था, परन्तु उस समय उसका साथी जेनेवा में शत्रु सेनाओं से घिरा हुआ था और भूखों मर रहा था। विजय के मद में अन्धे आस्ट्रियन सैनिक नील के फाटकों पर धावा बोल रहे थे। ऐसे में नेपोलियन कैसे चुप बैठ सकता था ? अपने साथियों को विपत्ति में पड़ा कैसे छोड़ सकता था ? जब यह असम्भव बात नेपोलियन ने सम्भव कर दिखायी तो लोग कहने लगे-‘अरे वाह ! यह कौन-सी बड़ी बात थी ? यह तो पहले ही सम्भव था।’
वैसे अधिकांश व्यक्ति और सैनिक एल्पस पर्वत की कठिनाइयों के कारण ही इस कार्य को दुष्कर समझते थे। सेनाएं उनके पास थीं, भयंकर शस्त्रास्त्र भी थे, परन्तु उनके पास एक ही वस्तु की कमी थी और वह थी दृढ़ इच्छाशक्ति, जिसके कारण नेपोलियन का कलेजा वज्र के समान कठोर हो जाता था। बड़ी-से-बड़ी आपत्ति आने पर भी वह अपनी आवश्यकता के अनुरूप अवसरों को अपने अनुकूल बना लेता था।
क्या यह अद्भुत बात बिना प्रयास के अपने ही आप हो गई ?
होरेशस ने टाइवर नदी के पुल पर केवल दो सैनिकों के साथ नब्बे हजार टक्सनों की सेना को पुल टूटने तक कैसे रोके रखा ? यह सब कैसे हुआ ? अपनी पराजय देखकर सीजर स्वयं भाला लेकर युद्ध के मैदान में कूद पड़ा और युद्ध का पासा पलट दिया। यदि रीड आस्ट्रियन भालों के सामने अपनी छाती न तान देता तो स्वतन्त्रता का मार्ग कैसे खुलता ? नेपोलियन अनेक वर्षों तक युद्धों में कैसे विजयी होता चला गया ? इतिहास ऐसे हजारों उदाहरणों से भरा पड़ा है, जिनसे यह सिद्ध होता है कि आत्मा की आवाज सुनकर दृढ़ निश्चयपूर्वक जो भी कार्य किया जाता है, संसार की कोई भी शक्ति उसकी सफलता में आड़े नहीं आ सकती। कोई भी बाधा उसमें रुकावट नहीं डाल सकती।
बहुत से व्यक्ति किसी खास अवसर की प्रतीक्षा किया करते हैं। वह अक्सर कहा करते हैं-मुझको मौका मिलने दो।
साधारण अवसरों को वे उपयोगी नहीं समझते। उन्हें यह ज्ञात नहीं कि कोई भी अवसर छोटा या बड़ा नहीं होता। छोटे-छोटे अवसर को भी व्यक्ति अपने बुद्धि-चातुर्य से महत्त्वपूर्ण बना सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि आप छोटे अवसर को भी हाथ से न जाने दें। कई बार छोटे-छोटे अवसर ही मनुष्य की बहुत बड़ी उपलब्धि का कारण बन जाते हैं।
ई.एच. चेपिन का कहना ठीक है कि अवसर की प्रतीक्षा करने वाले व्यक्तियों को महान या सर्वोत्तम नहीं कहा जा सकता। महान व्यत्ति तो वे हैं जो अवसर को अपना अनुगामी, अपना दास, अपना आज्ञापालक बना लेते हैं।
लाखों अवसरों को खोजने पर शायद ही कोई ऐसा अवसर मिले जो विशेष रूप से आपकी सहायता कर सके।
यदि आप विचार करेंगे तो आपको पता लगेगा कि अवसर आपके सामने सदैव उपस्थित होते रहते हैं।
यदि आज आप थोड़े से भी कामयाब हैं, तो आप उस विषय में सोंचें जब आपने यहां तक पहुंचने के अवसर को चुना और यहां तक पहुंचे। कोई अवसर कितनी विशेष उपलब्धि दिलाएगा, पहले से ऐसा कुछ नहीं कहा जा सकता।
आपमें इच्छाशक्ति है, काम करने की लगन है तो आपको किसी भी अवसर से लाभ उठाने से कोई नहीं रोक सकता।
अवसर तो ईश्वर की कृपा-रूपी बहती गंगा है। इसमें डुबकी लगाकर अपने जीवन को सफल एवं धन्य क्यों नहीं बना लेते ?
अवसर न मिलने का रोना कौन लोग रोते हैं, पहले इस तथ्य पर गौर करें। ऐसा करने वाले वही लोग हैं जो निर्बल हैं। जो संशय में जीते हैं। जो हीनता से ग्रस्त हैं, दब्बू और डरपोक हैं।
अपने को दुर्बल समझने की भावना वास्तव में सच नहीं होती। यह तो मन की एक बीमारी है जिसके भयंकर परिणाम होते हैं। उसे अपनी शक्ति का पता ही नहीं है; उसने बिना अपने आपको तौले यह समझ रखा है कि वह शक्तिहीन है, बदकिस्मत है। जरा सोचिए कि कोई भी व्यक्ति बदकिस्मती के चक्रव्यूह से कैसे निकल सकता है, जब तक कि उसे स्वयं ही विश्वास न हो कि वह इससे निकल भी सकता है।
जब व्यक्ति यह सोचने लगता है कि यह काम मेरे लिए असम्भव है और मैं यह काम नहीं कर सकता तो किसी विज्ञान या किसी टोने-टोटके में इतनी ताकत नहीं कि उसके दम पर उससे वह काम करा लिया जाए।
संदेह और अनिश्चय—यह दोनों दो परस्पर विरोधी दिशाएं हैं। जहां संदेह होगा, आप वहां किसी निश्चय पर नहीं पहुंच सकते। जिसके मन में यह संदेह होगा कि पता नहीं मैं इस काम को कर पाऊंगा भी या नहीं, वह कभी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। सफलता पाने के लिए तो दृढ़ निश्चय की आवश्यकता होती है। जब तक आप अपने शब्दकोश से दुर्भाग्य, असम्भव और अनिश्चय, संदेह आदि को निकालकर बाहर नहीं करेंगे। तब तक आपको जीवन के किसी क्षेत्र में भी सफलता नहीं मिल सकता। आपका ऐसा ही विश्वास रहा तो एक दिन आपके लिए अपने पैरों पर खड़ा होना भी असम्भव हो जाएगा।
अतः उठिए। आंखें खोलिए और इस सत्य को समझिए कि आपको जीवन में कुछ करना और बनना है।
यही अवसर है। अवसर का बहाना मत बनाइए। अवसर तो पग-पग पर बिखरे पड़े हैं। शाला अथवा कॉलेज का प्रत्येक पाठ एक अवसर है, प्रत्येक परीक्षा एक अवसर है, प्रत्येक अच्छी बात या सदुपदेश एक अवसर है, व्यापार-सम्बंधी कोई भी बात एक अवसर है।
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